जैन विश्वभारती संस्थान में गणाधिपति तुलसी के 24वें महाप्रयाणस दिवस पर ऑनलाईन संवाद कार्यक्रम का आयोजन
किसी जाति, पंथ, धर्म, समप्रदाय से सम्बद्ध नहीं थे आचार्य तुलसी
लाडनूँ, 9 जून 2020। अणुव्रत अनुशास्ता गणाधिपति आचार्य तुलसी के 24वें महाप्रयाण दिवस पर यहां जैन विश्वभारती संस्थान में आचार्यश्री तुलसी का समाज को अवदान विषय पर ऑनलाईन संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कुलपति प्रो. बच्छाराज दूगड़ की प्रेरणा से आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर के प्रखर वक्ता, विद्वान एवं शिक्षाविदों ने भाग लिया। कार्यक्रम में बुलंदशहर के श्यामलाल स्नातकोतर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. अशोक कुमार शर्मा ने कहा कि आचार्य तुलसी ज्ञान, भाव एवंक्रिया तीनों को एक रेखा में प्रस्तुत करने वाले युगपुरूष थे। वे जीवन में उमंग, उत्साह एवं प्राण फूंकने वाले महापुरूष थे। वे सिद्धपुरूष थे, जिन्होंने अंतश्चेतना को विकसित किया। उनके जीवन के हर क्षेत्र शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि में किये गये विशिष्ठ, अनूठे व अतुलनीय योगदान को हमेशा याद रखा जायेगा। ऐश्वर्य काॅलेज जोधपुर के एकेडमिक डीन प्रो. एके मलिक ने कहा कि आचार्य तुलसी मूल्यों, जीवन की कला और युक्ति को सिखाने वाले प्रणेता थे। वे चरित्र निर्माण, नैतिकता, कर्तव्य पालन, अनुशासन व मानवता के पुरोधा थे। वे मानवता के मसीहा थे, जिनसे डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद व पं. नेहरू जेसे राजनेता परामर्श लेते थे और देश की व्यवस्थाओं पर चिंतन प्राप्त करते थे। आचार्य तुलसी को किसी जाति, पंथ, धर्म, समप्रदाय से सम्बद्ध नहीं किया जा सकता है। उनके पदचिह्नों का अनुसरण सबको करना चाहिये।
श्रेष्ठ मानव निर्माण का सूत्रपात है अणुव्रत आंदोलन
जैन विश्वभारती संस्थान के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि नैतिक व राष्ट्रीय चरित्र निर्माण के लिये स्वतंत्रता के पश्चात अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया गया। इसमें आचार्य तुलसी ने समग्र गुणों वाला, श्रेष्ठ मानव बनाने के लिये पाथेय प्रदान किया। अणुव्रत में जीवनोपयोगी 11 सूत्रीय संहिता है। गुरूदेव तुलसी एक श्रेष्ठ कवि, गीतकार, लेखक व साहित्य-सृजक थे। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. बीएल जैन ने प्रारम्भ में अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया और संवाद कार्यक्रम और विषय-वस्तु के बारे में जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि आचार्य तुलसी ने श्रम एव निष्ठा की प्रतिष्ठा की थी। उसे संस्कृति के प्राण के रूप में प्रतिष्ठित किया था। उन्होंने अणुव्रतों को मानवीय प्रामाणिकता के रूप में बताया था। कार्यक्रम में प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रो. एमएल शर्मा चंडीगढ, प्रो. रमाकांत यादव आदि ने भी विचार व्यक्त किये। संचालन मोहन सियोल ने किया।
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